________________
(१७६) हाथ से लगाये हुये इस वृक्ष को भूल नहीं जावेंगे। अंतमें हमारी उस सच्चिदानंद प्रभु से प्रार्थना है कि आपको अपने ध्येय में-जिसके लिये आपने संसार और उसके वैभव को, अपने बंधुओंको तथा शारीरिक सुखको त्याग कर सन्यास लिया है-सफल करे और आपके परिश्रम को फलीभूत करे। हम सब अंतमें आपको हाथ जोड़ कर प्रणाम तथा नमस्कार करते हैं और विनति करते हैं कि आप इस मानपत्र को स्वीकार कीजिये।
हम हैं आपके सेवक-- पिंडदादनखां के हिन्दू ।
परिशिष्ट नं० ६.
ॐ अर्हन्नमः वन्दे श्री वीरमानंदं विश्ववल्लभसद्गुरुम् । " मरना भला है उसका जो अपने लिए जिए ।
जीता है वह जो मरचुका है कौम के लिये ॥" आनंद का विषय है कि लगभग १० वर्षके बाद मेरी और सुज्ञपाठकगणकी भावना सफल हुई।
सुज्ञ सज्जनगण! जिसके लिए आप बड़े चावसे राह देख रहे थे, जिसके लिए आप पत्रोंद्वारा बारंबार पूछनेका कष्ट
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com