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(१७५ ) भेजा और यह उस जगदीश्वर की कोई कृपाहीथी कि आप यहां पधारे और इस खारी पृथ्वी को मीठी ही नहीं प्रत्युत हरी भरी कर दिखलाया । इसमें अत्युक्ति नहीं कि जो लोग एक दूसरे को देखना तो क्या नाम लेना भी न सहार सकतेथे आपके सामने आते ही आपके प्रताप से मोम हो गये और एक दूसरे से मिलगये और उन्होंने अपनी कुटिलता और कठोरता, हठधर्मी और झूठे अहंकार को इसप्रकार. छोड़ दिया जैसे बरफ सूर्यके सामने अपनी कठोरताको त्याग देती है । पिंडदादनखां के हिन्दू कृतन्न होंगे यदि वह आपके इस परोपकार को भूल जायें । आपका जीवन क्रिया शीलताका जिसका आजकल प्रायः अभाव ही है-एक नमूना है। आपका हित, आपका उत्साह, आपका पुरुषार्थ, आपका मनोहर उपदेश, आपका इंद्रिय दमन, आपका निष्काम भाव,
और आपकी आत्मशक्ति और आपका सच्चे साधुका जीवन एक सच्चे सन्यासी का नमूना है जिस से प्रत्येक जन शिक्षा ग्रहण करके अपना जीवन सुधार सकता है जिसकी हिन्दूजाति के लिये हर तरफ से पुकार हो रही है । परन्तु जबतक हिन्दू सभा रहेगी-और वह अवश्य बनी रहेगी क्योंकि उसकी नींव आप जैसे निष्कामी और त्यागी महात्माने रक्खी है-और आपका नाम सदा प्रेम एवं सन्मान से स्मरण किया जावेगा । हमें आशा है कि आप फिर भी इस नगरको अपने दर्शन तथा धर्मोपदेश से कृतार्थ किया करेंगे और अपने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com