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( १७०) पर परम उपकार करके आप जैसे पवित्र चारित्रवाले उपदेष्टा, पथप्रदर्शक हमसे जुदा होते हैं ।
श्रीमान गुरु महाराज ! हमें छोड़ जानेसे पहले और जुदाई से हमारे हृदयों को ठेस लगाने से पहले हम आपसे यह आशा रखते हैं कि आप हमें अपने उद्गार प्रगट करने की आज्ञा देवेंगे। इसमें संदेह नहीं हृदय के भावों को हृदय ही जानता है शब्दों में उनका वर्णन नहीं हो सकता।
गुरुजी ! हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि हम इस समय बनावटी बातें कहने के लिये यहां इकट्ठे नहीं हुये प्रत्युत आपकी सहृदयता, सत्यता, मधुरवादिता, निष्पक्ष व्याख्यान शैली और सुंदर और बहु मूल्य उपदेशोंने हमारे दिलों को जीत लिया है और आपको हमसे जुदा होते देखकर हममें धैर्य की शक्ति नहीं रही। यही कारण है कि आपके प्रेम पाश में बंधे हुये हमारे दिल इस समय तड़प रहे हैं। महाराज ! यह महीनेभर का समय थोड़ेसे क्षणों के स्वप्नवत् निकल गया । हमारी हार्दिक इच्छा तो यही है कि आप कुछ समय और यहां विराजमान रहते क्योंकि आपके आचारविचारोंने हमारे दिलों में स्थान बना लिया है।
श्रीमान् गुरुजीमहाराज-आपका निष्काम जीवन हमारे लिये नमूना है। आपका तुच्छ वचन भी हमारे जीवन के लिये बहु मूल्य सिद्धांत से कम नहीं। आपकी विद्वत्ता, आपका निर्मल चित्त, आपकी परोपकारिता सब जानते हैं। जिसको Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com