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( १६९) खाने में नहीं लावेंगे। अतः यह पत्र आपकी सेवा में उपस्थित करते हैं आशा है कि आप इसे स्वीकार करेंगे-"
परिशिष्ट ३। सनखतरा निवासी मुसलमान भाईयोंका
दिया हुआ मानपत्र । श्री गुरु सोहनविजयजी महाराज की सेवामें विदायगी के समय मानपत्र
अल्लाहु अकबर, वन्दे मातरम् , वन्दे जिनवरम् , सत श्री अकाल ! ! !
भगवन् ! संसार के उद्यान में अनुभवी लोगोंने प्रतिदिन की घटनाओं और विप्लवों से यह अनुभव किया है कि प्रसन्नता के साथ क्लेश, आराम के पश्चात् दुःख, प्रकाश के पश्चात् अंधकार, फूल के साथ कांटा, ऊंचान के साथ निचान
और जीवन के पश्चात् मृत्यु और मिलाप के पश्चात् जुदाई होती ही है । दैव दो दिलों को कुछ दिनतक आराम चैन से नहीं बैठने देता । फिर हमें वह क्यों छोड़ता । अतः हमें भी आज वह कड़वा घूट मुंह को लगाना और जुदाई का दुःख अनुभव करना पड़ता है। इन थोड़े से दिनों में हम
* मूल उर्दू से अनुवादित । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com