________________
( १६६ )
परिशिष्ट २ पीर साहेबका प्रतिज्ञापत्र । पृष्ठ १०३ पर सनखतरा के चौमासे में पीर अहमदशाहसे भी उपाध्यायजी की भेट हुई थी । पीरजीने निम्नलिखित पत्र उनकी सेवामें उपस्थित किया था । मूल भाषा उर्दू है परंतु पाठकों की सुविधा के लिये उसका हिंदी अनुवाद भी नीचे दिया जाता है।
बिस्मिल्लाह अलरहमानुर्रहीम। जैन साधु पंन्यास सोहनविजयजी महाराज ।
आदाब-मेरा आना सनखतरे में अपने मुरीदों के हां हुआ । आपकी शोहरत सुनकर मुझे भी आपकी मुलाकात करनेका इश्तियाक पैदा हुआ। मुलाकात होने पर बाहमी बात चीत होने पर आपके पाक पवित्र वस्त्र पहनने के लफ्ज़ोंने मेरेपर बड़ा असर किया जिससे मैंने उसवक्त स्वदेशी पाक वस्त्र मंगा कर पहन लिया। जो उसूलन जायज़ साबित हुआ लिहाजा मैंने अपने मुरीदों को जो सनखतरावासी हैं इकठ्ठा करके उसके बारे में हिदायतकी जिसको सबने मनजूर कर लिया और यह इकरार किया कि हम ब्याह शादियों व दीगर रसूमात दुनियावी व दीनी में कभी भी नापाक वस्त्र जो चरबी की पान से बना हुआ होवे या ऐसी मैशीनका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com