________________
(१५६) सुन्दर जैन मन्दिर बनाहुआ देखें और उसमें इन महात्माजीको बैठे हुए देखूगा तब मेरे दिल में बहुत शान्ति होगी। यद्यपि मेरे इसलाम धर्म में बुत परस्तीको स्थान नहीं दिया है तथापि इन महात्माके उपदेश के प्रभाव से मूर्ति पूजापर मेरी पक्की श्रद्धा हो गई है।
वहांसे विहार करके आप गुरुदेव के चरणों में गुजरांवाले पधारे ।
॥श्री नवपदजीकी तपस्या आरम्भ ॥
गुरुदेवके चरणोंमें उपस्थित हो कर वन्दना नमस्कार करनेसे पहले आपने स्वर्गीय आचार्य श्री १००८ विजयानन्दसूरि (आत्मारामजी) महाराजकी समाधिके दर्शन किये। और उपस्थित जनताको गुरुकुलकी सहायतार्थ उपदेश दिया; और गुरुदेवके दर्शन करके अपनेको कृतकृत्य किया ।
कुछदिनोंके बाद अर्थात् वि. सं. १९८२ की ज्येष्ठ शुक्ला पंचमीके दिनसे मौन धारण पूर्वक आयंबिलकी तपश्चर्या के सार्थ आपने श्री नवपदजीका आराधन आरम्भ किया और कार्तिक कृष्णा पंचमीको समाप्त किया । इस कठिन तपश्चर्या में यद्यपि आपका शरीर बहुत कृश हो गया परन्तु गुरुदेवकी कृपासे व्रतका सम्पादन बड़ी सुन्दरता और निर्विघ्नतासे हुआ।
-
-
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com