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( १५५) धर्मपत्नी आदिके नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। इनको चैत्यवन्दन और गुरुवन्दनकी विधि सिखलाई गई।
___ वहांके स्थानकवासी साधु-साध्वियोंने विघ्न डालनेकी भरसक कोशिश की, परन्तु गुरुकृपासे सब व्यर्थ गई । आप लाला रामचन्द्रजी के मकान पर ठहरे हुए थे। वहां स्थाना. पतिके रूपमें रहे हुए स्थानकवासी साधु श्री लालचन्दजीने ला. रामचन्द्रजीको बुलाकर बड़ा भारी ठपका दिया और कहाकि तुमने इन पुजेरे साधुओंको अपना स्थान क्यों देरक्खा है ? इसपर उपर्युक्त लालाजीने उत्तर दिया कि महाराज ! मकान मेरा है मैंने दे दिया। वे तो अभी जानेवाले हैं परन्तु यदि वे चतुर्मासभर रहनेकी कृपा करें तो भी मैं उनको बड़ी खुशीसे रहने के लिये मकान दे दूंगा। आपको इस विषयमें क्या प्रयोजन ? वस्तुतः आपको इसमें किसी प्रकारका भी हस्ताक्षेप नहीं करना चाहिये ।
आपके प्रतिदिनके व्याख्यानमें हरएक संप्रदायके सैंकड़ों नरनारी आते थे। हिन्दुओंके अलावा मुसलमान भी आपके सदुपदेश का लाभ उठाते थे। उनमें अनार अलीशाह तो खास तौरपर आपके भक्त बन गये थे। एक दिन उन्होंने सभामें जैनों को उद्देश कर कहाकि जब मैं इस शहर में एक
* आपका इरादा तो इस जगह पर भगवान् के मन्दिर बनवादेने का पक्काथा और बन भी जाता परन्तु भावीभावकी प्रबलताने वह समय ही न आने दिया। लेखक । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com