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यहां से विहार करके फिलौर, बिलगा आदि नगरों में होते हुए आप शंकर पधारे। यहांपर ५, ७ घर खंडेरवाल जैनों के हैं । मन्दिर भी है। यहांपर आप १५ दिनतक रहे। सिक्खों की धर्मशाला में आपका उपदेश होता रहा । सैंकड़ों लोग आपकी धर्मकथा को सुनने के लिये आते थे। प्रभावना भी रोज होती थी। यहां से विहार कर आप नकोदर पधारे । यहांपर १२-१३ घर खंडेरवाल जैनोके हैं एक मन्दिर भी है। यहांपर भी आपके व्याख्यान में खूब रौनक रहती थी। आपके सदुपदेश से यहांपर खंडेरवाल जैन महासभाकी स्थापना हुई । यहां से विहार कर जालंधर, जंडियाला आदिमें धर्मोपदेश देते हुए आप अमृतसर पधारे। गुरु महाराज इस समय लाहौर में विराजमान थे। इस लिये यहां से जल्दी विहार करके गुरुचरणों में लाहौर पधारे। तथा १९८१ सं. का चतुर्मास आपने गुरुदेवके चरणों में रह कर समाप्त किया।
इस चतुर्मास में बड़ा आनन्द रहा; और श्री आत्मानंद जैन महासभा का अधिवेशन भी बड़ा उत्साहजनक हुआ ।
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