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( १४६ ) अमीचन्द जैनके स्थानमें हुआ) इन व्याख्यानोंमें आपने जैनधर्म, हमारा कर्तव्य, और देवपूजाकी आवश्यकता आदि विषयों पर खूब प्रकाश डाला । श्रोताओंकी संख्या काफी थी। आपका रोज़ाना व्याख्यान ला० मुकुंदीलालजीकी बैठकमें हुआ करता था । सभी वर्गके स्त्री पुरुष आपके सदुपदेशसे लाभ उठाते रहे । बहुतसे लोगोंने मांस मदिरा आदि अभक्ष्य पदार्थों तथा अन्य कई प्रकारके व्यसनोंके परित्यागका नियम लिया। यहां १५ रोज़ ठहर कर वापस आप अम्बाला शहरमें पधारते हुए अम्बाला छावनीमें आये । यहां अनुमान २-३. रोज ठहरे । पहले रोज़ आपका उपदेश दिगम्बर जैन मन्दिरके नीचे हुआ। दूसरे दिन दिगम्बर भाइयोंके आग्रहसे आपने एक सार्वजनिक व्याख्यान दिया । जैन धर्मके मौलिक सिद्धान्तोंका निरूपण करते हुए वर्तमान आर्यसमाजकी तर्फ से जैन धर्म पर होनेवाले आक्षेपोंका आपने बहुत ही अच्छी तरहसे निराकरण किया।
.. आपके इस व्याख्यान के लिये दिगम्बर भाइयों की. तर्फसे विज्ञापन भी बॉटे गये और घोषणा भी की गई थी।
अम्बाला शहर के भी बहुत से जैन और जैनेतर गृहस्थ आये, तथा पं० हंसराजजी शास्त्री भी इस अवसर पर वहां अचानक आ पहुंचे। आपके व्याख्यान के बाद शास्त्रीजी का भी बड़े मारके का व्याख्यान हुआ । उन्होंने "जैनधर्म और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com