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(१४१) जैनधर्म की व्यापकता और स्वतन्त्रता आदि विषयोंपर बड़ी ही सुन्दरतासे प्रकाश डाला।
आपके व्याख्यानों के लिये सनातनी, आर्यसमाजी, सिक्ख और मुसलमान आदि सभी वर्गके स्त्रीपुरुष लालायित रहते थे। बहुतसे लोग दोपहर और रात्रिके समय शंका समाधान के लिये भी आया करते थे। आप भी उन शंका ओंका समाधान बड़ी सुन्दरतासे करते थे । आपके धैर्य और शान्ति तथा विद्वत्ताके सब लोग कायल थे।
इस अवसर पर होशयारपुरसे श्रीयुत लाला दौलतरामजी आदि २०-२५ आदमी, और जीरेसे लाला ईश्वरदासादि कई श्रावक आपके दर्शनार्थ राहों में आये, उन सबकी यहांके लोगोंने अच्छी खातिर की।
“ जो जाको गुनजानही, सो तिहिं आदर देत; कोकिल अंबहिं लेत हैं, काक निबौरी लेत"।
समाजी पंडित मण्डली के उद्गार ॥ विहार करने से एक रोज पहले रात्रिके समय पाँचसात आर्यसमाजी पंडित उपाश्रयमें आपको नमस्कार करके बैठ गये, और बोले कि स्वामीजी महाराज ! आपने हमारे स्थान पर आठ रोज़तक अधिकांश मूर्तिपूजा के समर्थन में ही व्याShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com