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(१४० ) भेंट हुई। फिर पंन्यासजी श्री ललितविजयजी महाराजने वहांसे बंबई की ओर प्रस्थान किया, और आप वहांसे विहार करके होशयारपुर में श्री गुरुदेवके चरणों में पधारे । यहांपर आप गुरुदेव के चरणों में आठ रोज़तक रहे और बड़े प्रेमसे उनकी सेवाभक्ति करते रहे।
___अम्बाले की तर्फ को॥ होशयारपुरसे विहार करके बंगे, नवां शहर आदि स्थानों में धर्मप्रचार करते हुए आप राहों में पधारे । यहांपर चार घर श्वेताम्बर जैनों के हैं। उपाश्रय में ही एक जिनमंदिर है । मन्दिर में जैसी पूजाभक्ति होनी चाहिये, वैसी नहीं होती । मूर्तिपूजक जैनों की कमजोरी के कारण ऐसा हो रहा है । अस्तु, आप इसी उपाश्रय में ठहरे । आपका प्रवेश बड़े ठाठसे हुआ। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, तथा अन्य हिन्दू मुसलमान लोग भी आपके स्वागतार्थ प्रवेश में सम्मिलित हुए ।
यहांपर उपाश्रय के सामने आर्यसमाज मन्दिर के खुले मैदान में आपका आठ दिन तक लगातार उपदेश हुआ। . आपके इस उपदेश में सभी जाति और सम्प्रदाय के लोग सम्मिलित होते थे। प्रतिदिन के सार्वजनिक व्याख्यान में आपने "जैनधर्म का ईश्वर के बारे में क्या सिद्धान्त है ? उसके मतमें मूर्तिपूजा का क्या प्रयोजन है ? तथा वह कितनी आवश्यक है एवं जैनधर्मने विश्वको क्या सन्देश दिवा ? तथा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com