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(१३९ ) वहांपर आपने श्रीसिद्धाचल तीर्थकी महिमाका वर्णन किया । उसको सुनकर बहुतसे लोगोंने श्रीसिद्धाचलतीर्थ की यात्रा करनेका नियम ग्रहण किया। इस प्रकार आपका चतुसि जंडियाले में संपूर्ण हुआ। " अमर बेल बिनमूलकी, प्रतिपालत है ताहि; रहिमन ऐसे प्रभुहि तजि, खोजत फिरिए काहि"
श्री गुरुदेवके चरणों में ॥ जंडियालासे विहारकर आप जालंधरमें पधारे। यहांपर आपके गुरुभ्राता श्रीयुत पंन्यासजी श्री ललितविजयजी की आपसे भेट हुई । पंन्यासजी महाराज को गुरुदेवकी आज्ञासे महावीर जैनविद्यालय की बिल्डिङ्ग के लिये शीघ्रातिशीघ्र बंबई पधारना था, तथापि भ्रातृप्रेमसे खिंचे हुए आप होशयारपुरसे जालंधर पधारे; इधर आपभी अपने ज्येष्ठभ्राता पंन्यास श्री ललितविजयजी के समागम के लिये जालंधर पधारे। इस प्रकार आप दोनोंकी जालंधर में
___x यहांपर दो जिनमन्दिर और एक बाइयों का उपाश्रय है, और ५० घर जेनों के हैं। श्री आत्मानन्द जैन स्कूल और श्रीआत्मानन्द जैन लायब्रेरी एवं श्रीआत्मानन्द जैन सहायक सभा-आदि संस्थायें भी है। आपका चतुर्मास लाला. बीरुमल लोढ़ा और लाला. हंसराज दुगड़ की बैठको में हुआ । वयोवृद्ध लाला हरिचंदजी चोधरी, पंडित लच्छमणदासजी,
खेरायती शाह मालकश आदि धर्मचर्चा करके खूब लाभ उठाते थे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com