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( १३८ ) जनताको उससमय खास आवश्यकताथी। जनतापर आपके इससमय के उपदेशका जो प्रभाव पड़ा वह इस तुच्छ लेखनीके सामर्थ्य से बाहिर है।
सिक्ख कान्फ्रेन्स में ॥ इनदिनों जंडियालामें अकाली सिक्खोंकी एक प्रान्तीय कान्फ्रेंस थी। सिक्खनेताओंके सिवाय उसमें और भी देशनेता उपस्थित हुए थे। करीबन दस हज़ार मनुष्योंका समुदाय था। सिक्ख लोगोंके आग्रहसे एक रोज आप भी उक्त कान्फ्रेंस में पधारे। आपके बैठनेके लिये वहांपर खास प्रबन्ध था; जिससे कि आपके धार्मिक नियममें किसी प्रकारकी बाधा न होसके । सभापति के अनुरोध से वहांपर आपने संपके विषयमें एक बड़ाही मनोहर और शिक्षाप्रद उपदेश दिया । आपके उपदेशसे श्रोताओंके हृदयकमल एकदम खिल उठे, और चारों ओरसे भारतमाताकी जय और जैन धर्मकी जय और सत्य श्री अकालके ऊंचे नारोंसे पंडाल गूंज उठा । आपके बाद डाक्टर किचलु आदि देशनेताओंने आपकी शानमें बड़े ही आदरणीय शब्दोंका प्रयोग करते हुए कहाकि हम लोगों को तो आज ही मालूम हुआ है कि जैन समाज में.भी एसे २ अमूल्य रत्न भरे है ।
कार्तिक शुक्ला १५ के रोज श्री सिद्धाचलपटके दर्शनार्थ समस्तसंघ के साथ आप बाहर पधारे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com