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( १३७ ) अमृतसर में आपने आठ रोज़तक निवास किया। वहां से आप पुनः जंडियाला में पधारे। इस समय वहाँके श्री संघने आपका बड़ेही उत्साहसे प्रवेश कराया और वि. सं. १९८० का चतुर्मास जंडियाला में हुआ।
आपके इस चतुर्मास में धार्मिक कृत्यों के अलावा और भी कईएक उल्लेखनीय कार्य हुए ।
श्री आत्मानन्द जैन महासभा का तीसरा अधिवेशन भी यहांपर ही हुआ । लाला मगरमल खरैतीराम लोढ़ाने श्री नवपदजीका उद्यापन कराया। आश्विन मासमें श्रीनवपदजी की ओलीका आपने नौ दिनतक मौन रहकर आराधन किया। आपके स्थान में आपके शिष्य समुद्रविजयजीने ओलीके 'दिनों में व्याख्यान वांचा ।
चतुर्मास में जप, तप, ध्यान, सामायिक, प्रतिक्रमण, पूजा, प्रभावना आदि धर्मकार्य भी अच्छे हुए । बाहरसे भी बहुतसे भावुक गृहस्थ आये हुए थे। जैन प्रदीप के संपादक बाबू ज्योतिप्रसादजी आपके दर्शनार्थ आये थे।
श्री पर्युषणापर्वमें श्री कल्पसूत्रकी सवारी भी बड़े समारोह के साथ निकाली गई। जिसवक्त सवारी बाज़ार के मध्यमें पहुँची, उसवक्त आपने लगभग डेढ़ घंटे तक श्री पर्युषण पर्व और कल्पसूत्र का ज़िकर करते हुए बहुत ही अच्छा समयानुकूल उपदेश दिया, जिसकी आम
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