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(१३६ ) आपका चतुर्मास जंडियालामें हो। अब आपके आनेसे श्री संघने आपको भी चतुर्मासके लिये प्रार्थना की और होशयारपुरसे गुरु महाराजकी आज्ञा भी मँगवा ली। तदनुसार आपका चतुर्मास जंडियालामें होना सुनिश्चित हो गया । जबसे आपने जम्बूमें पंजाब श्री संघके समक्ष गुरुमहाराजकी इच्छानुसार कार्यसिद्धिके लिए छै विगय ( षट्विकृतियों) के परित्यागकी प्रतिज्ञा की थी, तबसे ले कर आप कृश होते चले गये क्यों कि, घी, दूध, दही, तेल, गुड़ और तली हुई किसी भी वस्तुको आप अंगीकार नहीं करते थे । और केवल पाँच वस्तुओं को ही ग्रहण करते थे। आपके शरीर को इस कदर कृश देखकर श्रीसंघको बहुत चिन्ता हुई, और आपसे पारना करने अर्थात् उनको ग्रहण करने के लिये बार २ प्रार्थना की। परन्तु आपने नहीं माना । तब वहांसे कई एक प्रतिष्ठित गृहस्थोंने होशयार पुर में जाकर गुरुमहाराजश्री के आगे प्रार्थना की, और उनके हाथसे आज्ञापत्र लिखवाकर लाये तथा आपसे भी अधिक आग्रह किया । तब आपने गुरुमहाराज की आज्ञा और श्रीसंघके आग्रह को मानलिया।
जंडियाला में चतुर्मास के सुनिश्चित हो जाने पर आप अमृतसरमें पधारे । यहांपर श्री आत्मानन्द जैन महासभा पंजाब की कार्यकारिणी कमेटीकी बैठक थी और उसमें आपका शामिल होना जरूरी था। आपके समक्ष उक्त कमेटीका कार्य बड़ी अच्छी तरहसे संपादन हुआ। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com