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( १३५ ) सारे विश्वके धर्मग्रन्थ मुझे खुदा नहीं बनासकते; जिसवक्त मेरेमें से खुदी सर्वथा निकलजावेगी, मैं खुदही खुदा बन जाउंगा। उसवक्त मुझे कोई रोकनेवाला नहीं होगा। बाकी मैं तो सत्यका पक्षपाती हूँ। वह जहांसे भी मिले, मैं लेने को तैयार हूँ। शास्त्रों में भी कहा है।
" ज्ञात्वा तं मृत्युमत्येति नान्यः पंथा विमुक्तये, मृत्योः स मृत्युमाप्नोति य इह नानेव पश्यति"।
वह सत्य चाहे किसी धर्म में हो, किसी मज़हबमें हो और किसी संप्रदायमें हो, मुझे उसे अङ्गीकार करने में कोई आपत्ति नहीं। मैंने कुरानशरीफ भी कुछ २ पढ़ा है। जहाँतक मुझे मालूम है, उसमें खुदातआलाका यही फर्मान है कि ऐ मेरे बन्दो ! तुम सदा पाक रहो, सबके साथ प्यारका बर्ताव करो, सबके ऊपर प्रेम जोर दयाभाव रक्खो, किसी भी जीवको मत सताओ ! इत्यादि ।
आपकी इन बातोंको सुनकर वह सज्जन आपको सलाम करके चुपके से वहाँसे चल दिया, और आप उपाश्रयमें आगये। पट्टीसे विहार करके तरनतारण आदि नगरोंमें होते हुए आप जंडियाला गुरुमें पधारे ।
जंडियालेमें पधारनेसे वहांके श्री संघको बड़ी खुशी हुई । वहाँका श्री संघ दो सालसे इस कोशिशमें था कि
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