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( १३४) जैसा समय होगा और जैसी गुरुमहाराजकी आज्ञा होगी वैसा हो जायगा। क्योंकि " गुर्वाज्ञा हि गरीयसी"।
इसके अनन्तर पट्टीके श्री संघकी साग्रह प्रार्थनापर आप पट्टीमें पधारे । आपके व्याख्यानमें जैन-जैनेतर सभीलोग आते थे; मंडीसे भी व्याख्यान श्रवणार्थ लोग आया करते थे। हिन्दुओंके अलावा मुसलमान सज्जनोंकी काफ़ी संख्या होती थी-लोग बड़े प्रेमसे व्याख्यान सुना करते थे।
एक दिन जब कि आप स्थंडिल हो कर बाहिरसे उपाश्रयमें वापिस आ रहे थे, तो आपको एक हृष्टपुष्ट लंबीसी दाढ़ी वाला मुसलमान सज्जन रास्तेमें रोक कर खड़ा हो गया । इतने में इधर उधरसे और भी बहुतसे लोग इकट्ठे हो गये। यह मुसलमान हररोज़ आपके व्याख्यानमें आया करता था। इसने सबके देखते हुए अपनी बग़ल में से
कुरानशरीफ़ को निकाल कर कहा कि-महाराज ! यदि आप इस कुरानशरीफ को मान लेवें, तो हम आपको खुदा माननेको तैयार हैं । यह सुनकर पासमें खड़े हुए लोग कुछ चकितसे हुए। आपने मुस्कराते हुए बड़ी शान्ति और धीरतासे उस मुसलमान सजनको कहा कि मैं तो खुदा बनने के लिये ही रातदिन मेहनत कर रहा हूँ। जबतक मेरेमें खुदी है तबतक एक कुरानशरीफ़ तो क्या
* यह मुसलमानोंका धर्मपुस्तक है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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