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(१३३) जायें इसमें यह कायदा होगा कि जब कभी वाच वगैराह का काम पड़े तो श्री संघ को शामिल करने की जरूरत नहीं रहती, पांति के हिसाब से लिया जावे और उसके लिये दो आदमी मुकर्रर किए जावें ।
नोट:-इस फैसले में जिस २ शख्स को जो जो धर्मकार्य करने को कहे हैं वह उनकी आत्मा के सुधार के लिए कहे गये है न कि कुछ और। इस लिए श्री संघमें से कोई भी व्यक्ति एक दुसरे पर ए टेक (ताना मारना) करने का हक्कदार नहीं है।
मेरे दिये हुए फैसले में कोई गल्ती हो गइ हो तो मैं मिच्छामि दुक्कडं देता हूं।
( ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ) शिवमस्तु सर्वजगतः, परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः । दोषाः प्रयान्तु नाशं, सर्वत्र सुखीभवन्तु लोकाः ॥
दः पन्यासजी सोहनविजय.
जंडियाला में चतुर्मास । कसूर के श्री संघ की, चतुर्मास के लिये की गई अभ्यर्थना का उत्तर देते हुए आपने फरमाया कि मैं अभी वचन नहीं देता।
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