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( १३० ) मगर जमानेकी हालत मद्दे नज़र रख कर और धर्मकार्य में विघ्न आते हुवे देख कर वा कुसंप से अपनी समाज की हानि होती हुई देख कर मुझे इस मामले में पड़ना पड़ा वरना कुछ जरूरत नहीं थी। भाइओ ! मैंने दोनों पक्षों की बातें सुनी और उनको गौर से विचारा और जहाँ तक मेरी अकल काम करती थी वहां तक मैंने विचार किया तो मालूम हुआ कि दोनों ही पक्ष वाले अपनी २ बातको सिद्ध करना चाहते हैं मगर सिद्धि केले के थम्भ के समान है । दर असल सोचा जावे तो दोनो पक्ष वालोंका पक्ष निर्बल है। दोनोंही अपने आपको सत्य मानते हैं, एक दूसरे के कसूर निकालने के सिवाय और कोई सबूत या दलील नहीं है। हां इतना जरूर है कि किसीसे ज्यादा गल्ती हुई और किसी से थोड़ी । आप जानते है कि जब कचहरी में मुन्सफ के सामने कोइ मुकदमा पेश होता है तो वह दोनो ( मुद्दईमुद्दायला ) से गवाह पेश करवाता है । और दोनो सवाल जवाब करते हैं। वह मुद्दइ और मुद्दायला अपनी २ जीत के लिए दलीलें और सफाइ के गवाह पेश करते हैं और अपने आप को ही सत्य मानते हैं परन्तु मुन्सफ दोनोंको सुन कर और उसका निर्णय करके फैसला करता है । चाहे किसी के हक्क में हो । इसी तरह मैंने आपश्री संघ के दोनों पक्ष वालोंको सुन कर जैसा मेरी अकल में आया है उसके मुताबिक कुसंप को दूर करने के लिए और संपकी वृद्धि के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com