________________
( १२९ )
॥ॐ॥ ॥ वन्दे वीरमानंदम् ॥
फैसला. संवत् १९८० प्रथम ज्येष्ठ कृष्ण ५ शुक्रवार ता. ११-८-२३ सोहनविजयजी की तर्फसे श्री संघ कसूरको धर्मलाभ पूर्वक मालूम हो कि आप श्री संघ मेरे उपदेश को सुन कर उसे अमली जामा पहनाने को तैयार हुआ है उस के लिए श्री संघ धन्यवादका पात्र है। बस आप सच्चे वीरपुत्र और गुरुभक्त हैं । जब कि जैनधर्म में मुख्य क्षमा की प्रधानता है तो फिर वहां लड़ाई झगड़े होवें ही क्यों ? मुझे इस बात की खुशी है कि कुछ दिन पेशतर कसूर श्री संघमें बेइतफाकी के कारण दो धड़े हो गये थे; उसे मिटाकर आपस में इतफाक कराने का बोझा मेरे सिर श्री संघने डाला। बड़ी खुशी के साथ दोनों पार्टियोंने यह लिख दिया कि हमारा आपस में जो झगड़ा है उसे मिटाने के लिए आप जो कुछ करें वह हम सब को मंजूर है इस में किसी तरह का भी हमे उज़र न होगा। इसलिए मैं श्री संघ कसूरका आपस में जो झगड़ा है उस को हाथ में लेता हूँ। अगरचे यह मामला दुनियादारी का है इसमें साधुओंका काम नहीं
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com