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( १२८ ) को शर्बत पानी पिलानेका काफी प्रबन्ध था । नवमी के रोज़ आपका इसी सभा मंडप में एक और प्रभावशाली व्याख्यान हुआ । व्याख्यानका विषय था " जैनधर्मका वास्तविक स्वरूप" आपने इस विषयको जिस खुबीसे उठाया और जनताके हृदयोंपर उसको जिस खूबीसे अंकित किया; वह अवर्णनीय है।
व्याख्यान समाप्त होते ही जैनधर्मकी जय, अहिंसामय धर्मकी जय, श्री गुरुदेवकी जय के नारोंसे मंडप गूंज उठा; इसके अलावा यहांपर और भी कई प्रकारके सामाजिक सुधार हुए । श्रीसंघने चतुर्मासके लिये विनति की, और श्री जिनेन्द्र भगवान के मन्दिरके निर्माण का भी निश्चय हुआ। ___ यहांपर खास उल्लेखनीय बात यह हुई कि कसूर श्री संघ में किसी कारण वश कुसंप था, आपके जोरदार उपदेश में संप हुआ। दोनों पक्षवालों की प्रार्थना को स्वीकार करके आपने जो फैसला सुनाया उसकी नकल यहां उद्धत कर देते हैं।
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