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( १२७ ) स्तुतिकी । इसकेबाद कसूर के लाला ज्ञानचन्द और पट्टी निवासी जैन युवकोंके सुन्दर भजनोंके बाद जीरा निवासी लाला नत्थूरामके सुपुत्र लाला बाबूसमजी एम् . ए. एल्. एल्. बी वकीलने स्वर्गीय आचार्यश्रीका जीवन चरित्र बड़ीही रसीली भाषामें कह सुनाया। तदनन्तर कईएक सुन्दर और समयोपयोगी रसीले भजनोंके बाद करीबन ११ बजे सभा विसर्जन हुई।
दो पहरके बाद फिर दूसरी सभाका आरंभ हुआ। इस समय श्रोताओंकी संख्या प्रातःकालकी अपेक्षा बहुत अधिक थी। ला. ज्ञानचन्द आदि कईएक युवकोंके भजनोंके बाद आपका व्याख्यान प्रारम्भ हुआ। आपने सिंह गर्जना करते हुए बड़ी ही ओजस्विनी भाषामें "जयन्ती क्या है ? क्यों और किसकी मनानी चाहिये” इत्यादि विवेचन करके स्वर्गीय आचार्यश्री के जीवनकी कई एक उल्लेखनीय घटनाओंका दिग्दर्शन कराते हुए, समाज, धर्म कौर देशपर उनके किये उपकारोंका वर्णन बड़ी ही उत्तमतासे किया।
आपका एक एक शब्द श्रोताओंके हृदयोंको पार करता जाताथा । जिन लोगोंने आपके इस व्याख्यानको सुना वे आज तक स्मरण कर रहे हैं।
व्याख्यान के अनन्तर सबके मुखसे धन्य २ की आवाजें आती थीं। लाला प्रभुदयालकी तर्फसे आगन्तुक लोगों
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