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जाति एवं संप्रदाय के लोग आपके और चार-पाँच अकाली सिख तो भक्त ही बन गये ।
करतेथे । ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, सिख, मुसलमान आदि सभी उपदेशमें आया करते, खास तौर पर आपके
इधर ज्येष्ठशुक्ला अष्टमीका दिन भी बहुत नज़दीक आरहा था । वह दिन स्वर्गीय आचार्य श्री १००८ श्रीमद्विजयानन्दसूरि, उर्फ आत्मारामजी महाराज के स्वर्गवासका है । इसीरोज़ जैनधर्मका वह प्रतापी सूर्य अस्त हुआ था !
इस दिन आपकी जयन्ती मनाने के लिये पहले ही से तैयारियें होने लगीं । एक वैष्णव मन्दिर के खुले मैदान में मंडप बनाया गया । मंडपको खूब सुसज्जित किया और एक उच्च सिंहासनपर धर्म - और समाजनायक स्वर्गीय आचार्य श्री की सुंदर मूर्तिको विराजमान किया । जीरा और पट्टी आदि शहरों की भंजन मंडलियाँ तथा कईएक योग्य व्यक्तियोंका आगमन हुआ ।
अष्टमी के दिन प्रातःकाल सभामंडपमें जैन, वैष्णव, आर्यसमाजी, सिख और मुसलनान, हरसंप्रदायके सज्जन स्त्री - पुरुष मौजूद थे | सभामंडप जनतासे खचाखच भर गया । अनुमान ८ बजे कसूरके एक प्रतिष्ठित सद्गृहस्थके नेतृत्वमें जयन्ती महोत्सवका कार्य आरम्भ हुआ ।
प्रारम्भमें ज़ीरा निवासी ब्रह्मचारी शंकरदांसजीने गुरु
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