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( १२१ । परित्याग रहेगा; अर्थात् हम कोई भी अन्नजल नहीं लेंगे।" यह सुनकर चारों तर्फ से “हाँ, ठीक है” की आवाजें आने लगीं। बस फिर क्या था ? आपके इन शब्दोंका इन दोनों सजनों के हृदयपर इस कदर प्रभाव पड़ा कि उसीवक्त वे दोनों उठकर एक दूसरेके गलेसे लिपट गये। लोगोंने उसवक्त खूब तालिये बजाईं और खूब हर्ष मनाया। उस समय कईएक भद्र पुरुष तो आपको विष्णुका अवतार कहने लगपड़े। बहुतसे आपको शांति की साक्षात् मूर्ति और धर्मका अवतार बतलाने लगे।
तात्पर्य यह है कि कई वर्षों के इन बिछड़े हुए सज्जनोंके मिलाप कराने में किसी देवी हाथका होना अवश्य मानना पड़ता है।
___ यहांपर जैनों के सिर्फ चार घर हैं। परन्तु दुर्भाग्यवश चारों ही एक दूसरेसे अलग हैं; चारों में परस्पर प्रेमके बदले द्वेष है। आपके आनेपर आपके अतिशयसे कहिये, या दैवकृपासे कहिये; कुछ समय के लिये इनमें मिलाप हो गया।
एक जैनेतर सज्जनने आपकी सेवामें उपस्थित होकर कहा कि महाराज! कृपा करके आप अपने शिष्यों का भी आपसमें मेल कराइये । इन्होंने तो सिर्फ आपके रहने तक ही कुछ मेल किया है। वैसे तो इनका आपस में बोलना तक मी बन्द है । आपस में मिलकर ये एक मकान में तो क्या
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