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( १२० ) गये । यहां पर पाँच छ हज़ारके करीब हिन्दुओं की आबादी है, परन्तु आपस में लड़ाई-झगड़े के कारण धडेबन्दी इतनी ज़बरदस्त थी कि उसका उल्लेख करते हुए मनमें दुःख होता है।
सौभाग्यवश आपके पधारने पर वे झगड़े समूल नष्ट हो गये । यहां पर एक चाचे और भतीजेका आपसमें बहुत समय से झगड़ा चल रहा था, वह भी आपकी कृपासे शान्त हो गया। आपके पधारनेसे लोगोंमें इस कदर उत्साह और प्रेम बढ़ा कि सबने मिलकर आपकी सेवामें एक मानपत्र अर्पण किया । स्वयं लाला नानकचन्दजीके साथ और किसी क्षत्रिय सज्जनका झगड़ा बहुत वर्षोंसे चला आताथा, लोगोंने बहुत कुछ प्रयत्न किया, परन्तु वे मिटा नहीं सके।
इनका द्वेष आपसमें इतना बढा हुआ था, कि, एक दूसरेका मुंहतक नहीं देखताथा। एक दूसरेके खूनका प्यासा था । इनको बहुत कुछ कहा सुना गया परन्तु ये दोनोंही सज्जन टससे मस नहीं हुए। आखिरकार एकदिन अपने जाहिर भाषणमें आपने लोगोंको उपदेश देते हुए इनदोनोंके विरोधके विषयमें जनतासे फर्माया कि सुनो भाइयो ! इन दोनों सज्जनोंको बहुत कुछ समझाया गया, परन्तु इन्होंने हमारी एकभी नहीं सुनी और न मानी ! अब आप लोग इसबात का प्रण करें कि “ जबतक ये दोनों भाई आपसमें प्रेमपूर्वक एक दूसरेसे मिल न जावें तबतक हम सबको अन्न और जलका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com