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( ११६ ) के भाषण हुआ करते हैं ] पर आपके दो सार्वजनिक व्याख्यान हुए।
एक बात यहां और उल्लेखनीय है कि स्यालकोटमें स्थानकवासी साधु श्री लालचंदजी स्थानापतिके रूपमें बहुत समयसे विराजमान हैं । आपका इरादा था कि यदि लालचंदजी तथा वहांके अन्यसज्जन चाहें तो आप उनसे मिलें और वहांपर कुछ धर्मोपदेश भी देवें ।
आपने वहाँके ला. पालामलसे अपने इन विचारोंको प्रकट किया और कहा कि आप लालचंदजी तथा अन्य आगेवान गृहस्थोंको पूछ कर हमें उत्तर देवें । परन्तु वहांपर साम्प्रदायिकताके बढ़े हुए व्यामोहने आपके इन उदार विचारोंको उनके हृदय में स्थान देनेसे सर्वथा इनकार कर दिया ।
आप यहांपर अनुमान आठ दिन ठहरे। वहां से विहार करके वजीराबाद और गुजरात आदि शहरोंमें होते हुए जेहलमके श्री संघकी अभ्यर्थनासे जेहलम पधारे । वहांके लोगोंने आपका बड़े ही उत्साहसे स्वागत किया । नगरके हरएक जाति और संप्रदाय के लोगोंने आपके प्रवेश तथा स्वागतमें भाग लिया । आपके प्रतिदिन होनेवाले उपदेशमें सैंकड़ों स्त्रीपुरुष हाज़िर होते थे। वहांपर हरएक संप्रदायके लोग निवास करते हैं । आपसमें धार्मिक विषयोंपर इनका कभी २ वाद विवाद भी होता रहता है। आपके पास भी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com