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( ११४ ) मंदस्वरसे बोले कि हां, आपका कथन तो यथार्थ है; मगर, ऐसा बनना बड़ा कठिन है । हम लोग तो कदाचित् आपके इन सुविचारों से सहमत भी होजावें, परन्तु यह आशा बिलकुल नहीं कि हमारे साधु महात्मा इन बातों को मान जावें ।
महाराजजीने कहा-तो भाई ! फिर आपही बतलावें कि सिर्फ कोरी बातों से क्या लाभ हो सकता है ? इत्यादि वर्तालाप करने के बाद वे दोनों महानुभाव आपके उदार विचारों ओर विद्वत्ताकी प्रशंसा करते हुए वहां से चले गये।
जम्मू शहर में आपके सार्वजनिक व्याख्यानों की धूम मच गई। विद्वानों में भी आपकी धारणा, योग्यता, और विद्वत्ता की प्रशंसा होने लगी। परन्तु सब लोग समान विचार के अथवा गुणानुरागी नहीं होते । तदनुसार कईएक स्थानकवासी सज्जनों को आपकी यह प्रशंसा असह्य हो उठी। उन्होंने अपने साधु मोतीलालजी से भी सार्वजनिक व्याख्यान देनेके लिये कहा, परन्तु उन्होंने इनकार कर दिया। विशेष आग्रह करने पर भी वे नहीं माने । अन्तमें किसी न किसी प्रकारसे समझा बुझाकर स्थानक में ही भाषण करानेका निश्चय हुआ। बड़े लम्बे चौड़े इश्तहार छपवाकर बॉटे गये । आपने उपयुक्त समय देखकर वहांके प्रतिष्ठित स्थानकवासी गृहस्थ लाला कर्मचन्दजी और लाला मेघामलजी को बुलाकर कहा कि आप लोगों को यह तो मालम ही है कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com