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( ११३ ) महाराजजी बोले 'अच्छा यदि आपलोग हृदयसे मिलाप चाहते हैं तो इसके लिये हम पहले कदम उठाते हैं । देखो, कल आपके साधु श्री मोतीलालजी स्यालकोट से यहांपर आनेवाले हैं। मैं अपने सभी श्रावक वर्गको सूचना किये देता हूँ कि कल श्री मोतीलालजीको लेनेके लिये सब लोग सामने जावें और उनका व्याख्यान भी सुनें एवं जब वह विहार करें तब उनको प्रेम पूर्वक पहुंचाने के लिये भी जावें तथा आहार पानीके लिये भी विनति करते रहें।
__ इसी प्रकार जबभी कोई साधु या साध्वी आवे तब उनके साथभी वे लोग ऐसा ही सद्व्यवहार करें । बस इसी प्रकार आपभी अपने भाईयों को सूचना देदेंवें कि जब कोई संवेगी (पुजेरों का) साधु या साध्वी आवें तब उनको लेनेके लिये और पहुंचानेके लिये जावें तथा श्री मंदिरजीमें प्रभुके दर्शन करें और उनका व्याख्यान सुनें ? यदि आपलोगों की इच्छा हो तो मैं तो आपके स्थानकमें भी आकर आपको धर्मोपदेश सुनानेको तैयार हूँ। मनुष्य मात्रको धर्मोपदेश सुनाना और उसे सन्मार्ग पर लानेका उद्योग करना हमारा सबसे पहला फर्ज है, खास कर आप लोगों के ऊपर तो मेरा सबसे अधिक हक है।
आपकी इस स्पष्ट घोषणाको सुनतेही यह दोनों महाशय एकदम खामोश हो गये । कुछ देरके बाद ढीले और
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