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॥ त्याग प्रतिज्ञा ॥ " यदि रक्त बूंदभर भी होगा कहीं बदन में,
नस एक भी फडकती होगी समस्त तनमें, यदि एक भी रहेगी बाकी तरंग मनमें,
हरएक सांस पर हम आगे बढ़े चलेंगे, यह लक्ष्य सामने हैं पीछे नहीं हटेंगे"
___ उक्त उद्यापनके मौकेपर एकत्रित हुए पंजाब श्री संघको अभिलक्ष्य करके आपने फरमाया कि गुरुदेव के समक्ष हुशीयारपुर में पंजाब श्री संघने गुरुकुल के लिये जो बीड़ा उठाया है; वह जबतक पूर्णतापर न पहुंचे तबतक मुझे आजसे छ विगय (६ विकृतियों) का त्याग रहेगा। * और आहारपानी में आजसे सिर्फ पाँच द्रव्य रखूगा, अन्य सब वस्तुओं का मेरे लिये परित्याग रहेगा।
॥ आगेवानों की भेंट ॥ " पोथी पढ़ पढ़ जग मुवा, पंडित भया न कोय । _एको अक्षर प्रेमका, पढ़े सो पंडित होय ॥"
दूध-दही-घी-गुड-तेल-और कडाह; ( तली हुइ वस्तु ) यह छ विगइ कही जाती है-पांच द्रव्य-यानी अपने भोज्यपदार्थ में केवल पांच चीजें ही खानेके उपयोगमें लेनी-इससे अधिक नहीं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com