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( ११०) को सुनकर उन लोगोंने आपकी धारणा और विद्वत्ताकी मुक्तकण्ठसे प्रशंसा की । और कहा कि आज आपके व्याख्यानसे हमें बहुत लाभ हुआ है; हम लोगोंके जैन धर्मके विषयमें कुछ और ही तरहके खयाल थे । परन्तु व्याख्यानसे मालूम हुआ कि हमारा वह निरा भ्रम ही था। इसके अतिरिक्त कईएक सज्जनोंने विदेशी खांडके परित्यागकी प्रतिज्ञा की।
और बहुतोंने मांस-मदिरा आदि दुर्व्यसनोंके परित्यागका नियम ग्रहण किया। पौष वदिमें लाला साईदास पूर्णचंद्र
और लाला वधावामलने बड़े प्रेम और उत्साहसे श्री नवपदजीका उद्यापन किया । . इस अवसर पर गुजरांवालेसे पंन्यास श्री विद्याविजयजी और श्री विचारविजयजी आदि मुनिराज भी पधार गये । और कसूर, लाहौर, पट्टी, नारोवाल, सनखतरा, गुजरांवाला, होशयारपुर और रामनगर आदिसे भी अनुमान सातआठ सौ आदमी आये थे। रथयात्रा का जलूस बड़े ठाठके साथ निकाला गया । सरकारी बैंड और हाथियोंकी सजावट तथा भिन्न २ शहरों की भजन मंडलियों के सुरीले भजनोंसे जनता आनन्द से परिप्लावित हो रहीथी। बहुत से भावुक लोग भगवान् की पालखी के दुकान के पास आते ही उठकर खड़े हो जाते और रुपया-नारियल लेकर प्रभुको भेट चढ़ाते थे; तात्पर्य, कि सवारी का दृश्य अपूर्व था ।
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