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( १०९ ) यहांसे कईएक ग्रामोंमें धर्मोपदेश देते हुए आप काश्मीर की राजधानी जम्मूमें पधारे । जम्मू आपकी जन्मभूमि है । यहांपर एक जैन मन्दिर और आठ दस घर श्रावकोंके हैं। स्थानिकवासी भाइयोंके घर तो करीबन १५० हैं। यहांके लाला सांईदास पूर्णचन्द्र और ला० बधावामलजीको नवपदजीका उद्यापन करना था, ये लोग चतुर्मासमें सनखतरेमें आपको विनति करनेभी आये थे । आप जम्मूमें अनुमान डेढ़ मासतक रहे । प्रतिदिन आपका धर्मोपदेश होता रहा। बहुतसे स्थानकवासी बन्धुभी आपके पास आया जाया करते थे। उनमेंसे कितने एक तो दर्शन की भावनासे, कितनेएक अपना प्राचीन परिचय दिखाने की गर्ज से, कितनेएक आपकी विद्वत्ताको परखनेके लिये, तथा कितने एक संसारी पक्षके स्नेहके नाते और कइएक गुणानुरागको लेकर आते थे। ___ दीवानोंके मन्दिरके विशाल चौकमें “जैनधर्म और हमारा कार्य-कर्तव्य" आदि विषयों पर आपक कईएक सार्वजनिक व्याख्यान भी हुए। आपके प्रथमदिन के व्याख्यानमें यद्यपि आपको ज्वर हो गया, तथापि व्याख्यानके समय पर आपने चढ़े हुए ज्वरमें ही करीबन २ घंटे उपदेश दिया।
व्याख्यान-सभामें सभी वर्गके लोग उपस्थित थे । बहुतसे विद्वान् लोग भी सभामें हाजिर थे। आपके व्याख्यान Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com