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( १०८ ) यहां एक बातका उल्लेख करदेना समुचित होगा कि जब यहां सनखतरे में वैसाखमास में बड़ा भारी मेला हुआ था-तब भी आपने मेले में पधारकर ' अहिंसा परमो धर्मः' के विषय में प्रभावशाली उपदेश देकर हजारों मनुष्यों को मांस मदिरा का त्याग कराया था
वहांसे मार्गशीर्ष द्वितीया को आपने जम्मूकी तरफ को विहार किया।
सनखतरेसे चलकर आप जफ़रवाल पधारे । यहांपर जैनोंका एक भी घर नहीं है । पर जब वहांके लोगोंको पता लगा कि वेही सनखतरे वाले महात्मा पधारे हैं तो सब लोग एकत्रित होकर आपके दर्शनार्थ आये और उन्होंने आपसे धर्मोपदेश देनेकी विनति की । ___आपने अपनी रसीली जबानसे उनलोगों को व्यसनों के त्याग का उपदेश दिया । उपस्थित लोगों में से एक वृद्ध पुरुषने आपको धन्यवाद देते हुए कहा कि कितनेक वर्ष पहले यहांपर श्री वल्लभविजयजी महाराज पधारे थे। उनका उपदेशामृत पान करके हमको बड़ी तप्ति हुई थी। धन्य है ऐसे पक्षपात रहित महापुरुषों को ! यद्यपि हम जैन नहीं हैं तथापि आप लोगों के दर्शनों से हमारा जैनधर्म के प्रति अनुराग बहुत है। जैन साधुओं की धारणा जितनी प्रिय लगती है उतनी औरों की नहीं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com