________________
( १०४ ) करने पधारे तो भोजन करके अपने कई शिष्यों को साथ लेकर आपके पास भी आये । आपके साथ उनका प्रेमपूर्वक वार्तालाप होनेलगा। उस समय पीर साहेब का बदन अशुद्ध विदेशी वस्त्रोंसे आच्छादित था। आपने प्रेमभरी आवाजसे पीरसाहेब को संबोधित करके कहा कि “पीरसाहेब! बुरा न मानियेगा; मैं बिलकुल साफ २ कहनेवाला हूँ; वह भी किसी द्वेषबुद्धिसे नहीं, किन्तु शुद्ध हृदयसे। आप इन लोगों (मुसलमानभाइयों) के पीर कहे जाते हैं, ये सब लोग आपकी आनदान में चलते हैं। यदि आपही त्याज्य वस्तुओं का व्यवहार करेंगे तो इनलोगोंपर आपका क्या प्रभाव पड़ेगा। मेरे बिचार में इन अशुद्ध, अपवित्र विदेशी वस्त्रोंका पहनना सर्वथा त्यागदेना चाहिये !
विदेशी वस्त्रों में हरएक जानवरकी चर्बीका उपयोग होताहै, विदेशी खांड भी भक्षण करनेके योग्य नहीं; क्योंकि उसमें भी मुर्दा पशुओंकी अस्थियोंका खार दिया जाता है । आखीरमें एक बात और है, “ यदि कपड़े पर खूनका एक भी छींटा पड़ जावे तो उस वस्त्र के साथ पढ़ी हुई नमाज़ खुदाको मंजूर नहीं होती" ऐसी आप लोगोंकी पूरी मान्यता है। परन्तु मांस भी तो खूनका ही जमाव है। देखिये, लोग मरे हुएको कबर में डालते हैं अर्थात् जिस जगाह पर मुर्दे को रखें उस स्थानको कबरस्थान कहते हैं परन्तु जो मनुष्य खुदाका बन्दा कहलाकर अपने पेटमें मुर्देको डाल रहा हो, उसके पेटको
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com