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( १०३ ) (क्षत्रिय ) आपके पास आये। उनके साथ सनखतरेकी म्युनिसिपल कमेटी के प्रधान लाला अमीचन्दजी खंडेलवाल थे । थानेदार साहेब इस उद्देश्यसे आपके पास आयेथे कि देखें, यह साधु कोई पोलीटिकल आदमी है या कोई सच्चा महात्मा है । आपके साथ थानेदार साहेब की बातचीत होने लगी। आपने उनको उससमय जो उपदेश दिया, उसका परिणाम यह निकला कि थानेदार साहेबने आजन्म मांसाहार का परित्याग किया और आपके चरणों में प्रणाम करके अपनी प्रतिज्ञामें दृढ़ रहनेका आशीर्वाद मांगा। इसके साथ ही लाला अमीचन्दजीने आजन्म चमड़े का जूता नहीं पहनने की अटल प्रतिज्ञा की । " जो तूं चाहे अधिक रस सीख ईखसों लेय, जो तोसों अनरस करै ताहि अधिकरस देय"।
विशेष उल्लेखनीय बात "जिस राह में हैं ठोकरें उसराह ए इन्सां न चल, जुर्मो गुनाह के जोरसे वरना गिरेगा मुँहके बल " ।
आपके चतुर्मास के दरम्यान सनखतरे में मुसलमानों के यहां एक पीर साहेब आये । उनका ग्राम के बाहर एक तकिये में मुकाम कराया गया ।
जब वह अपने भक्तों के यहां बाजे के साथ भोजन
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