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आपके इस उपदेशका उस गुप्तचरके हृदयपर बड़ा प्रभाव पड़ा । एकदिन उससे न रहा गया, वह सभा में ही उठकर खड़ा हो गया, और हाथ जोड़कर कहने लगा 66 महा-राज ! धन्य आपको ! आपके उपदेशामृतको पान करके मेरा हृदय गद् गद् होगया, परन्तु क्या करूं इस पापी पेटकी खातिर मैं आजकल खुफिया पुलिस में काम करता हूँ । आप कृपा करके मेरे जैसे अधम व्यक्तिका भी उद्धार करें। मैं आया तो आपकी रिपोर्ट लेनेको था क्योंकि यहांसे किसीने यह खबर भेजी थी कि यहांपर राज्य विरुद्ध लोगों को उकसाया जाता है मगर मैंने जो कुछ सुना है उससे तो मैं उस व्यक्तिपर लानत दिये बगैर नहीं रह सकता । परंतु एक तरह तो मैं उसका उपकार भी मानता हूँ । अगर वह ऐसी खुबर न देता तो मुझ जैसे तुच्छ व्यक्ति को आपके दर्शन और आपके इस उपदेशका कहांसे लाभ होता " इत्यादि कह कर वह वहांसे चला गया ।
सत्यमेव जयति नानृतम्
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॥ थानेदार पर उपदेश का प्रभाव ।
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मुद्दइ मुद्दाला देखता, कानून किताबें खोलता | अपना गुन्हा देखा नहीं, मुन्सिफ हुआ तो क्या हुवा
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एकदिन स्यालकोट जिले के थानेदार लाला लेखराजजी
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