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( ९५ ) लोगोंकी प्रार्थनाको सुनकर आपने कहा कि मैं अभी तो कुछ नहीं कह सकता। जैसी गुरुमहाराजकी आज्ञा और क्षेत्र फर्सना होगी वैसा होगा।
यह कह कर आपने नारोवाल की तरफ विहार किया। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र तथा मुसलमान आदि सब लोग आपके साथ बहुत दूर तक गये । इस अवसरपर अमृतसरके लाला हरिचन्द भी आपके दर्शनार्थ आये हुए थे । सनखतरेकी इस रौनक को देखकर वे बड़े प्रसन्न हुए, उन्होंने सभामें खड़े होकर कहा कि यदि महाराज श्री सनखतरेमें चातुर्मास करें तो मैं भी वापिस यहां आकर साधर्मिवात्सल्य करूंगा और भगवान की पूजा पढ़ाऊँगा। लोगोंने आपको धन्यवाद दिया । ज्येष्ठ वदि में यहांसे विहार करके आप नारोवाल पधारे। नारोवालमें एक जिनमन्दिर और २५ घर श्रावकोंके हैं। नगर में आपका बड़ी धूमधामसे प्रवेश हुआ । यहां पर देवीद्वारा के खुले मैदानमें आपका व्याख्यान हुआ । हिन्दू-मुसलमान, सिक्ख, ईसाई आदि सभी लोग आपके उपदेशमें सम्मिलित होते थे।
अष्टमी के स्थानमें पंचमीको सवारी हमेशा ज्येष्ठ शुक्ला अष्टमी के दिन स्वर्गीय आचार्य श्री १००८ विजयानन्दसूरि महाराजका जयन्ती महोत्सव
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