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( ९३ ) और फैल गई । सनखतराके अलावा बाहरके ग्रामों के लोग भी बड़ी श्रद्धा और उत्साहसे आपका उपदेश सुननेको आते थे । निरामिष भोजी जनताके अतिरिक्त कसाई लोगभी आपके प्रेमभरे उपदेशसे खिंचे चले आते थे। वे लोग भी आपके दयामय उपदेशोंको बड़े चावसे सुनते थे ।
आपका दयामय उपदेश उनके कठोर हृदयों को भी एक बार मोम बनादेता था । जैसे कहा है " किन्न कुर्यात् सतां वचः”
आपके भाषणोंका वहांकी जनतापर इसकदर प्रभाव पड़ा कि सबने ( हिन्दू व मुसलमानोंने ) मिल कर एक विराट् सभाकी और उसमें सब (हिन्दू-मुसलमानों) ने अलग २ आपको सम्मान पत्र दिये, जो कि अन्यत्र प्रकाशित हैं ।
इन मान पत्रोंका उत्तर देते हुए, अहिंसामय धर्मका वर्णन करते हुए, जगद्गुरु श्री हीरविजयसूरि और मुगल सम्राट अकबरके सम्बन्धका उदाहरण देते हुए आपने जो सम्भाषण किया, उसका इसकदर जनतापर प्रभाव पड़ा कि लेखनी द्वारा उसका वर्णन होना अशक्य है।
कसाइयोंके नेता मियां फजलउद्दीनने तो अपने कसाइपनेके कामका ही त्याग कर दिया।
सभाके समक्ष की हुई उस पुण्य प्रतिज्ञाका लोगोंपर
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