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उन पूज्य पूर्वाचार्यों के बनाये हुए जैन ग्रंथ रत्नों के प्रताप से ही आज हम संसार को अपना उज्वल मुख दिखा रहे हैं।
हर्षका विषय है कि हमारे जैन समाज के विद्वानोंने महात्माओंके जीवनचरित लिखने की प्रथा को आज तक प्रचलित रक्खा है । इन सब बातों को लक्ष्य में रख कर आज मैं भी इस बातका अनुकरण करता हुआ इस बीसवीं शताब्दि के एक धर्मवीर महात्मा का अनुकरणीय पुनीत जीवनचरित आप के समक्ष रखने का सौभाग्य प्राप्त करा रहा हूँ।
पूज्य गुरुदेव श्री उपाध्यायजी महाराज श्री सोहनविजयजी गणी ने वि. सं. १९८२ मार्गशीर्ष कृष्णा चतुर्दशी रविवार तदनुसार तारीख १५-११-२५ के अमांगलिक दिन ठीक डेढ़ बजे शहर गुजरांवाला (पंजाब) में सकल श्रीसंघ को शोकग्रस्त छोड़ कर स्वर्गलोक को अलंकृत किया। उसी दिनसे मेरे मनमें यह उत्कंठा हुई कि आप गुरुवर्यकी जीवनघटनाओं को संकलित करके जैन संसारके सामने रक्खू, जिस से जैन संसारको ज्ञात हो कि हमारे गुरुवर्य श्री सोहनविजयजी महाराजने किस प्रकारसे केवल जैनों पर ही नहीं अजैनों पर भी उपकार किया है। आपने
"सब जीव करूँ शासन रसी,
ईसी भावदया मन उल्लसी" श्री वीतरागदेवके इस पवित्र फरमानको अपने हृदयपट्ट
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