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सुखी था तथा दानवीर, शूरवीर, धर्मवीर आदि असंख्य नररत्नोंको उत्पन्न करके यशास्वादन कर रहा था।
हमारे जैन समाज में भी ऐतिहासिक ग्रंथरत्नों का कम आदर नहीं है । हमारे पूज्य पूर्वजोंने अनेकानेक महापुरुषों की जीवन-घटनाओं को संग्रहीत करके असंख्य ग्रन्थ रत्नों का निर्माण करके तथा उन्हें सुरक्षित रख कर अपनी विशद कीर्तिको दिगन्तगामिनी बना दिया । ___उन पूज्य पूर्वाचार्यों की सुकृपा से ही हम अपना मस्तक उन्नत करके संसार को दिखा सके हैं कि हमारे जैन समाजमें-जैन धर्म में-श्री सिद्धसेन दिवाकर, श्रीहरिभद्रसूरिजी, श्री हेमचन्द्राचार्यजी, जगद्गुरु श्री हीरविजयमूरिजी आदि अनेकानेक प्रौढ एवं प्रतिभाशाली विद्वान् हो चुके हैं, जिन्होंने अपनी प्रौढ़ विद्वत्ता से राजा महाराजाओं को प्रतिबोध करा कर उन को जैन बनाया था और जैन धर्म का डंका विश्वभर में बजवाया था।
जैन धर्म में सम्प्रति, कुमारपाल, भूपाल जैसे पृथ्वीपति और वस्तुपाल, तेजपाल, विमलशाह, भामाशाहादि मंत्री जगडुशाहादि अनेक धर्मात्मा, दानवीर, शूरवीर, धर्मवीर, सद्गृहस्थ हो चुके हैं, जिन्हों ने अपने भुजाबल से देश की रक्षा की थी और अपनी उदारता से याचकों की दरिद्रता को देश निकाला दे दिया था। मैं तो दावे से कह सकता हूँ कि
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