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पर अंकित करके और नीतिकार के "वसुधैव कुटुम्बकम्" इस वाक्यको चरितार्थ करते हुए, बिना भेदभाव से उपाश्रयोंकी चार दीवारीको छोड़ करके, खुले मैदानमें खड़े होकर हरएक जातिके मनुष्योंको देवाधिदेव वीतराग प्रभुके वचनामृतपान कराकर उनको जैनधर्म का अनुरागी बनाया।
अहा ! जिनको हिन्दू, जैन आदि म्लेच्छ समझते हैं और पुकार २ कर ऐसा कहते है ऐसे मुसलमान और करातिक्रूर कसाइयों तकको भी अपने प्रतिभाशाली उपदेश से प्रतिबोध कराकर उन्हें दयालु बनाना यह आपश्रीका ही काम था। आपने पंजाब के जैन समाजके हितार्थ श्री आत्मानंद जैन महासभा पंजाब स्थापित की इस प्रकार आपने दूरस्थ जैन बन्धुओंको संगठनरूपी मजबूत धागेमें पिरो कर जैनधर्मकी अपूर्व सेवा की; और इस महासभा के द्वारा आपने जैन धर्म व जैन समाजको उन्नतिके पथ पर ले जानेका बीडा उठाया था । यह सब वृत्तान्त इस पुस्तक के साद्योपान्त अवलोकनसे सुज्ञपाठकों को भलीभांति विदित हो जायगा ।
मैं इन सब घटनाओंको शीघ्र संसारके समक्ष रखने के उद्देश्यसे संगृहीत करनेका प्रयत्न करने लगा। परन्तु गुरुविरहानिने कुछ समय तक इस कार्यमें सफलता प्राप्त न होने दी।
प्रातःस्मरणीय स्वनामधन्य पूज्यपाद परम गुरुदेव आचार्यवर्य १००८ श्रीमद्विजयवल्लभसूरिजी महाराज की
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