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( ८१ ) स्वीकार करके आप वहां पधारे और आपने एक प्रभावशाली वक्तृता देकर सबको संतुष्ट किया ।
आपके उपदेश के, प्रारंभ में सब सजनोंने मिल कर कुछ रुपये, एक मलमलका थान और एक मानपत्र, आपकी सेवामें उपस्थित किया। ____ आपने इन लोगोंकी भेंटका सादर अभिनन्दन करते हुए उसे लौटा दिया; और जैन साधुओंके आचार विचार
और उसके पालन आदि नियमोंपर खूब प्रकाश डाला जिससे श्रोतागणोंको अन्यान्य बातोंके साथ २ यह भली भाँति मालूम होगया कि जैन साधु नतो अपना कोई स्थान रखते हैं, न पैसेको स्पर्श करते हैं और न स्त्रीको छूते हैं, तथा पैदल ही सब जगह भ्रमणकरते और सदा भिक्षा मांगकर खाते हैं । एवं इस प्रकार लाया हुआ वस्त्र भी अंगीकार नहीं करते । अगर उनको ज़रूरत पड़े तो वे कपड़ा स्वयं माँगकर ले आते हैं क्योंकि 'मुनयो विरक्ता भवन्ति' ।
आपने साधुके आचारकी मोटी २ बातें समझाकर अन्तमें कहा “ मैं आपकी इसमेंटको स्वीकार करने से सर्वथा लाचार हूँ। आप इसे उठालेवें ।”
यह सुनकर उन्होंने थान और रुपये तो उठालिये, किन्तु सम्मानपत्रको सभाके समक्ष पढ़कर आपके करकमलों में सादर समर्पण किया ।
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