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(८०) का जमघट था । आपके आगमनसे प्रत्येक भाविक नरनारी का हृदय उत्साहसे परिपूर्ण हो रहा था । तदुक्तं, पुण्यैरेव हि लभ्यते सुकृतिभिः सत्संगतिर्दुर्लभा ।
सार्वजनिक व्याख्यान " ते धन्याः पुण्यभाजास्ते, तैस्तीर्णः क्लेशसागरः ।
जगत्संमोहजननी, यैराशाशीविषीजिता । "
भा०-जिन्होंने जगत में फंसानेवाली आशारूपी सर्पणी को जीत लिया है वे धन्य एवं पुण्यशाली है, वे क्लेश सागर को तर गये हैं।
जीरा में आप के उपदेशके समय हर जाति और समुदायके लोग उपस्थित होतेथे । एकदिन बाजार में आपका 'मनुष्य कर्तव्य' के विषय में बड़ाही मनोरञ्जक और प्रभावशाली भाषण हुआ। कुछदिन ठहरने के बाद आप जब बिहार करने लगे तब वहांके जैनेतर सज्जनोंने आपको कुछ दिन और ठहरने के लिये बड़ी नम्रतासे आग्रह किया।
इन सज्जनों के विशेष अनुरोधसे आप कुछ दिनों के लिये और ठहरे । जीरा में सनातनधर्मावलंबियों की तर्फसे प्रतिवर्ष रामजयन्तीका त्यौहार मनाया जाता है। इस वर्ष आपको जयन्ती के महोत्सव पर मंडप में पधारने के लिये सब सज्जनोंने मिलकर प्रार्थना की। इन गृहस्थों की अभ्यर्थना को
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