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( ७८ ) श्रावकोंके आठ-दस घर और एक जिनमन्दिर है। यहांपर बीकानेरसे कईएक श्रावक-श्राविकायें आपके दर्शनार्थ पधारे। यहांसे आप वडोपूल गये। यहांपर मंडी डभवाली और बंगला फाजलका से शा. चांदमलजी, शा. जेठमल और धनसुखरामजी डभवाली और बंगला फाजलका में पधारने की विनति करनेको आये।
आप सबलोग मंडी डभवालीतक पैदल आपके साथ ही आये । सूरतगढ़से चलकर रास्तेमें बडोपूल, हनुमानगढ़
और मंडी सींगरियाँ आदि स्थानोंमें धर्मोपदेश देते हुए आप डभवालीमें पधारे।
यहांपर मारवाड़ियों के सिवाय गुजराती श्रावकों की भी तीन दूकानें हैं । यहांपर आपके दो तीन उपदेश हुए, जिनका श्रोताओं के दिलोंपर बड़ा गहरा असर पड़ा । सेठ चांदमलजीके छोटे भाई श्रीयत वृद्धिचन्दजी का धार्मिक विश्वास कुछ डांवाडोल हो रहा था । आपके सदुपदेशसे उसमें बड़ी दृढता आगई । आपने उनको वासक्षेप भी दिया ।
डभवालीसे विहार करके आप बंगला फाजलका में पधारे। आपका प्रवेश बड़ी धूमधामसे हुआ। यहांपर आपके कईएक सार्वजनिक व्याख्यान हुए, जनताने बड़े आनन्द से श्रवण किये । इस अवसर पर पंडित हंसराजशास्त्री भी आगये, उनके भी रात्रिको दो तीन दिन व्याख्यान हुए । जैनधर्म के
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