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( ७७ ) से अभिनंदन करने लगे, जैन धर्मकी भूरि भूरि प्रशंसा करने,
और कहने लगे कि हमको दो अब पता लगा है कि जैनधर्म इस तरह उच्चादर्शवाला एवं विशाल है-हमतो इन्हीको (तेरापंथी साधुओंको) ही जैन साधु समझतेथे-परंतु अब आपके पधारने में पता लग गया कि वास्तवमें जैनधर्म, एवं जैन साधु एसे होते हैं।
सरदार शहर आपके उपदेश और पंडितजीके लेक्चरों से जैन धर्मके वास्तविक स्वरूपको भली भाँति पहचान गया, जोकि इसके लिये बिलकुल नया था ।
तात्पर्य यह है कि आपके पधारनेसे अनेक भव्य पुरुषोंने धर्मके तत्वको ग्रहण करके अपने जन्मको सफल किया। इसी लिये तो कहा है
अहह महतां निःसीमानश्चरित्रविभूतयः । फाजलका बंगला (पंजाब) निवासी सेठ जेठमलजी जोकि अपने चचा चाँदमलजी के साथ पूज्य कालूरामजी के दर्शनार्थ सरदार शहरमें आये थे; उनको आपके दर्शनसे बहुतही लाभ हुआ और आप सदाके लिये जैन धर्म के सच्चे सेवक बन गये । और गुरुमहाराजसे बंगला फाजलका पधारनेके लिए साग्रह विनतिकी।
सरदारशहरसे विहार करके ग्रामानुग्राम विचरते हुए और धर्मोपदेश देते हुए आप सूरत गढ़में पधारे । यहां पर
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