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चतुर्मास में सेठ सुमेरमलजी सुराणाने अपनी लक्ष्मी का खूब ही सदुपयोग किया । जैसे कहा भी है कि
दातव्यमिति यदानं दीयतेऽनुपकारिणे, देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्विकं विदुः ॥
सरदार शहर में पधारना जिनेन्द्रपूजा गुरुपर्युपास्ति, सत्वानुकंपा शुभपात्रदानम् । गुणानुरागः श्रुतिरागमस्य, नृजन्मवृक्षस्य फलान्यमूनि ॥
बीकानेरसे विहार करके कईएक ग्रामों में विचरते हुए तथा धर्मोपदेश देते हुए, आप सुजानगढ़ में पधारे । यहांपर ओसवालों के लगभग ५०० घर हैं जो कि प्रायः तेरहपंथी संप्रदाय के अनुयायी हैं । परन्तु सुजानगढ़ में एक जिनमन्दिर भी अपने सौन्दर्य और विशालतासे नगरकी शोभा को बढ़ा रहा है। बहुत से सज्जन पुरुष आपके पास दयादान और देवपूजाके स्वरूप और उपयोग के विषय में धर्म
नोट:-चातुर्मास के पश्चात् आप भिन्नासर, उदयसर, नालसोमाडी, आदि ग्रामों के मंदिरों के दर्शनार्थ पधारे थे तब श्रीयुत सुराणीजी, श्रीयुत कालुरामजी लक्ष्मीचंदजी कोचर और श्रीयुत देवीचंदजी छीपाणी आदि छीपाणी बंधुओं की तरफसे साधार्मीक वात्सल्य पूजा प्रभावनादि हुएथे, हजारों नरनारिओंने लाभ लियाथा, इन कार्यों में लोगों को इतना उत्साह और आनंद आया था कि अभीतक वहांके लोग आपके शुभ नाम को याद कर रहे हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com