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इसलिये अब तुम तैयारी करो। समय पूरा होने माया है । ऐसे हृदय-विदारक शब्द सुनकर पंडित श्री लाभविजयजी ने फिर पूछा--स्वामिन् ! सभी तैयार ही है। प्राचार्य श्री ने पुनः बतलाया कि जब मैं मारवाड में था तब मैंने योगीराज श्री विजयशान्तिसूरीश्वरजी महाराज से कहा था कि अन्तिम समय में मेरी खबर लेना । उसी के अनुसार वे मुझे सावधान कर गये हैं । इस समय उनकी आँखें और चेहरा खूब लाल हो गये और तेज कम होता हुआ मालूम होने लगा। सीधे बैठकर बातें करते थे सो बन्द कर मस्तक झुकाकर बैठने लगे।
इस अन्त समय में प्राचार्य श्रीविजयने मिसूरीश्वरजी, आचार्य श्री विजयोदयसूरि तथा आचार्य श्री सागरानन्द सूरि वगैरह अन्तिम मिलाप के लिये आ पहुंचे।
इसके बाद आचार्य श्रीविजयसिद्धिसूरि तथा सेठ साराभाई डाह्याभाई और कस्तूरभाई लालभाई आये तब पुनः सहज ही मस्तक उठाकर सामने देखा और हाथ जोड़े। आजका दृश्य सभी को जुदा ही प्रतीत हुमा । इसलिए आचार्य श्री का सकल परिवार महो० श्री देवविजयजी, प्रखर पंडित श्री लाभविजयजी वगैरह पचास साधु साध्वी हाजिर थे और बार बार नमस्कार मंत्र का स्मरण कराते थे। इसी तरह दो दो घंटों के बीच बीच में अनशन कराया जाता था। अन्त समय की अपूर्व शान्ति थी। लगभग छः बजे अन्त समय का मृत्युकालीन श्वास शुरू हुआ। सभी को ऐसा प्रतीत हुमा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com