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the entire assembly, headed by the Jagat-Seth from Murshidabad, conferred on him the Highest religious honour of Jainism, the great title of "Yuga Pradhan."
___Allahabad Leader,
Monday July 15, 1935 श्री आचार्य भगवान् प्राबू में विराजते थे उस समय आपने अहमदाबाद में दर्शन दिये ।
समाधि मरण की तैयारी प्राचार्य श्री विजयकेशरसूरीश्वरजी महाराज को सावण सुदी १५ को दोपहर बाद बिस्तर (शय्या) में दस्त होने लगे
और तीन दिन बाद खून के दस्त शुरू हो गये। इससे सभी निराश हो गये। प्रात्मशान्ति के लिये प्रत्याख्यान व्रत लेकर उपवास जाप वगैरह करने लगे। आपकी यह प्रबल इच्छा थी कि किसी के साथ वैर-विरोध न रह जाय, अतः आप बार बार संघ को खमाने लगे। पंचमी के दिन दस्त बन्द हो गये। इसलिये सुबह के पहर आचार्य श्री ने बतलाया कि आज मेरे चारों आहार का प्रत्याख्यान है। पाबूजी से योगीराज श्री विजयशान्तिसूरीश्वरजी महाराज मुझे कह गये हैं ? महो० श्री देवविजयजी ने पूछा कि क्या आप बतायेंगे कि वे क्या कह गये हैं ? प्रत्युत्तर में आपने बतलाया कि जो कह गये हैं वह मैं जानता हूं।
मुझे योगीराज आबू से सूचना कर गये हैं इसलिये मैं माज तैयार होकर बैठा हूँ। अब मैं यहां थोडे घंटों का ही मेहमान हूं।
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