________________
राजा अर्जुन, (३२) चम्पानगर के राजा दत्त, (३३) साकेतपुर के महाराजा मित्रानन्दी, इन दस राजाओं की रानियां और स्वयं महाराजा जैन धर्मी थे और इन दस राजाओं के पुत्रों ने दीक्षा ले आत्म कल्याण किया जिनके नाम (१) सुबाहू (२) भद्रनन्दी (३) सुजात (४) सुलासव (५) महचन्द्र (६) वैश्रमण (७) महाबल (८) भद्रनन्दी (६) महीचन्द और (१०) वरदत्त, जिनका विस्तिरित वर्णन विपाक सूत्र श्रुत स्कंध दूसरा अध्याय एक से दस तक प्रतिपादित है ।
(३४) महाराजा हस्तीपाल पावापुरी के राजा थे, आपके आग्रह से भगवन्त परमात्मा ने अन्तिम चतुर्मास पावापुरी में किया था, भगवन्त का इसी नगरी में निर्वाण और गणधर गौतम स्वामी को केवल ज्ञान उत्पन्न हुआ था।
इन चौंतीस राजाओं में महाराजा चेटक जिनके सामंत अट्ठारह और उदायी नरेश के दस मिलाने से बासठ की संख्या होती है । इसके अतिरिक्त काशी का शंखराजा, कम्पीलपुर का जयकेतु भी जैन थे।
उपरोक्त टिप्पण के अतिरिक्त अनेक अमात्य प्रधान जैन होने के प्रमाण मिलते हैं।
जिस समाज में देशाधिपति धर्मानुयायी हों, उस धर्म की उन्नति में बाधा नहीं आती, वर्तमान में किसी दिन कोई नरेश व्याख्यान में आ जाय तो व्याख्याता प्रतिबोधक पद से विभूषित हो जाते हैं। मेवाडं देश के अनेक महाराणाओं ने जैन धर्मोन्नती में देवालय निर्माण में और व्यय हेतु जागीर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com