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से भगवान महावीर परमात्मा के भक्त बन गये, और राज आय में से चौथा भाग परोपकार में व्यय करने की प्रतिज्ञा ली, आप छ?-छ? की तपस्या करने लगे-तप के कारण आप देवगति में सूर्याभदेव पद पाये जिसकी कथा रायपसेणी सूत्र में है।
(१७) महाराजा शिव-आप हस्तिनापुर के नरेश थे, आपने तापस दीक्षा ली थी, तप की विशेषता से आपको विभंगज्ञान उत्पन्न हो गया था, जिसके आधार पर आपने उद्घोषणा की थी कि इस लोक में सात द्वीप और सात समुद्र हैं, संयोग से श्री महावीर भगवन्त से भेंट हुई, तब शिवराजर्षि को भगवान ने समझाया तब निज मान्यता को त्याग कर भगवान् के भक्त बने और दीक्षा ग्रहण की जिसका वर्णन भगवती सूत्र में है।
(१८) महाराजा वीराग (१६) वीरजस जिनका वर्णन स्थानांग सूत्र में है, (२०) मथुरा नगर के नमिराज (२१) कलिंग देश के महाराजा करकुण्ड (२२) पाचाल देश के दुमाई नरेश (२३) गांधार देश के निग्घई नरेश यह चारों ही, प्रतिबुद्ध नाम से प्रसिद्धि पाये थे, जिनका विस्तिरित वर्णन उत्तराध्ययन सूत्र के अट्ठारहवें अध्याय में है, (२४) नागहस्तीपुर के महाराजा अजीत शत्रु (२५) रिषभपुर के नरेश धनबाहू, (२६) वीरपुर नगर के महाराजा कृष्ण मित्र (२७) विजयपुर के महाराजा वासवदत्त (२८) सौगंधिक नगर के राजा अप्राहत, (२६) कनकपुर के राजा प्रियचन्द्र,
(३०) महापुर के नरेश राजबल, (३१) सुघोष नगर के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com