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(१२) महाराजा विजयसेन अापको राजधानी पोलासपुर नगर थी। आपको पट्टरानी श्रीदेवी जिनधर्म की उपासिका थी, अापके पुत्र का नाम अइमत्ता कुमार था, कुमार ने बालवय में दीक्षा ग्रहण की थी, जिसका वर्णन अन्तगड दशा सूत्र में है।
(१३) महाराजा नन्दीवर्द्धन-पाप क्षत्रीयकुण्ड नगर के राजा भगवान महावीर के भ्राता थे, जब भगवान दीक्षा ले विहार करते हुए "मुण्ड स्थल" मुंथला पधारे तब दीक्षा समय से सात वर्ष पश्चात् आप भगवंत के दर्शनार्थ मुंथला पधारे और स्मरार्थ यहां एक जैन मंदिर बनवाया जिसकी प्रतिष्ठ केशी श्रमणाचार्य ने कराई जिसका शिलालेख भी है, और कल्पसूत्र में भी वर्णन पाया है।
(१४) महाराजा शतानिक-आप कौशाम्बिक नगर के राजा थे, आपकी महारानी का नाम मृगावती था, राजवी की बहिन का नाम जयन्ती था राजा के उत्तराधिकारी महाराजा उदायो थे, जो जिन भक्त थे जिसका वर्णन भगवती सूत्र शतक बारहवां प्रथम उद्देश्य में है।
(१५) महाराजा सेन-पाप अमरकंका नगर के राजा थे, आपके नगर में सूर्याभदेव भगवन्त को वन्दन करने आये थे, और भक्ति वश बत्तीस प्रकार के नाटक किये थे, जिसकी कथा रायपसेणी सूत्र में वर्णित है ।
(१६) महाराजा परदेशी-श्वेताम्बिका नगर के राजा थे, स्वयं नास्तिक-अधर्मी थे आपका प्रधान चित्रसार्थी जैन था जिसके प्रयत्न से श्रीकेशीगणधर, महाराज के उपदेश Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com